बिलाल खत्री
अलीराजपुर। पितृ पक्ष के पावन अवसर पर श्री रणछोड़ राय भागवत समिति द्वारा पितरों की आत्मशांति एवं मोक्ष हेतु सात दिवसीय श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा यज्ञ का भव्य आयोजन पितृपथ में किया गया। इस आध्यात्मिक आयोजन में व्यास पीठ पर पं. श्री गुरु शर्मा (उन्हेल वाले) विराजमान हैं, जिन्होंने अपने मधुर वचनों व आध्यात्मिक ज्ञान से बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को भागवत महापुराण की महिमा से परिचित कराया। कथा के शुभारंभ में पं.शर्मा ने कहा, भागवत का दूसरा नाम है ‘ज्ञान।उन्होंने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मनुष्य खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है। यह जीवन केवल सात दिनों में सुधर सकता है, क्योंकि सप्ताह भी सात दिनों का होता है।”

धर्म, सेवा और आचरण का दिया संदेश
कथा के दौरान व्यास जी ने तीर्थयात्रा, संत सेवा और धार्मिक आचरण की महत्ता बताई। उन्होंने कहा कि,वर्ष में कम से कम एक बार तीर्थ अवश्य करना चाहिए। अगर भागवत कथा में आनंद नहीं आ रहा है, तो समझिए कि अभी भगवान से सच्चा प्रेम नहीं हुआ है।
उन्होंने समाज को जागरूक करते हुए कहा कि पहले मंदिर पक्के और मकान कच्चे होते थे, अब उल्टा हो गया है। धर्म से विमुख हो रहे समाज को जागना होगा, अन्यथा आगे मातांरण होता रहेगा।
श्रवण के नियम भी बताए
कथा श्रवण हेतु श्रद्धालुओं को विशेष नियमों का पालन करने का आग्रह किया गया, जैसे कथा के सात दिनों तक निराहार, फलाहार या एक समय भोजन कर भी कथा सुनी जा सकती है।

नाखून और बाल न काटें, भूमि पर शयन करें, और झूठ न बोलें
किसी के हृदय को ठेस न पहुंचाएं और यदि कोई कुछ मांगने आए, तो उसे खाली हाथ न लौटाएं।व्यास पीठ पर आने से पूर्व ही पंडाल में उपस्थित होना चाहिए।व्यास जी ने यह भी कहा कि,भगवान को छप्पन भोग न लगाएं तो चलेगा, लेकिन कोई भूखा आपके द्वार पर आए तो उसे भोजन कराना ही सच्चा धर्म है।
समिति सदस्य कांतिलाल राठौड़ ने जानकारी देते हुए बताया कि इस अवसर पर व्यास पीठ पर विराजमान पं. शिव गुरु शर्मा का नानपुर व जोबट के राठौड़ समाज जनों द्वारा रुपटा पहनाकर आत्मय स्वागत किया। कथा के मुख्य यजमान के रूप में अमृतलाल राठौड़ (अवस्या सुंदरम परिवार) ने धर्म लाभ लिया, जबकि एक दिन के यजमान नरेंद्र योगेंद्र (रेडियो वाला) परिवार रहे।
श्रद्धालुओं में उत्साह, भजनों पर झूमे भक्त
कथा के दौरान भजनों की प्रस्तुतियों पर महिला एवं पुरुष श्रद्धालु भावविभोर होकर झूम उठे। व्यास जी ने वृंदावन का उदाहरण देते हुए कहा,बांके बिहारी बड़ा दयालु है, एक बार वृंदावन आकर देखो।उन्होंने जीवन में “मैं” के भाव को त्यागने का आग्रह करते हुए कहा कि,ईश्वर किसी न किसी रूप में आपके कार्यों को सिद्ध करने आता है।
समापन संदेश: पितरों की सच्ची सेवा है भागवत कथा
कथा के समापन पर व्यास जी ने कहा कि,”श्राद्ध पक्ष में भागवत कथा का आयोजन केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि पितरों की सच्ची सेवा है। इससे पितृजन तृप्त होते हैं और परिवार में सुख, समृद्धि व शांति का वास होता है।इस अवसर पर विभिन्न समाजों के महिला-पुरुष श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्ज कर भागवत कथा का श्रवण कर धर्म लाभ लिया।