बिलाल खत्री
बड़वानी भगवान बिरसा मुंडा शासकीय महाविद्यालय, पाटी में उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार भारतीय ज्ञान परंपरा की गतिविधियों के अंतर्गत हिंदी का अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। प्रशासनिक अधिकारी एवं हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मंशाराम बघेल ने अतिथि परिचय के साथ किया। उन्होंने कहा कि हिंदी आज विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, जिसे सौ से अधिक देशों में बोला और समझा जाता है। यह केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं बल्कि सांस्कृतिक पहचान और वैश्विक स्तर पर भारत की छवि का आधार है।
मुख्य वक्ता प्रो. सुभाष सोलंकी, शासकीय महाविद्यालय, अंजड़ ने अपने व्याख्यान में कहा हिंदी हमारी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान है, जो हम सबको एक सूत्र में जोड़ती है। हमें बोलचाल और व्यवहार में शुद्ध हिंदी अपनानी चाहिए ताकि इसकी गरिमा बनी रहे। उन्होंने हिंदी की वैश्विक उपयोगिता को रेखांकित करते हुए बताया कि आज विदेशी विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में हिंदी का अध्ययन बढ़ रहा है, जो इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता को सिद्ध करता है। प्रो. अनिल डकिया शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सेंधवा ने कहा कि भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम ही नहीं, बल्कि यह सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक विस्तार की धुरी है।
विधि महाविद्यालय बड़वानी के ग्रंथपाल मोहन इस्के ने कहा कि आज हिंदी में निरंतर पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं, विशेषकर भारतीय ज्ञान-परंपरा से संबंधित कृतियाँ। ये पुस्तकें न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करती हैं, बल्कि हिंदी भाषा के माध्यम से उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाने और वैश्विक स्तर पर विस्तार देने का कार्य भी कर रही हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. परवेज मोहम्मद ने कहा भाषा ही वह साधन है जिसने मनुष्य को जानवर से इंसान बनाया। हिंदी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के रूप में हमारे विचारों और भावों की आधारशिला है। नई शिक्षा नीति में भी मातृभाषा के प्रयोग और संवर्धन पर विशेष बल दिया गया है, जो हिंदी के क्षेत्र और प्रभाव को विस्तारित करेगा।