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छिड़क कर खूने जिगर रंग भर दिया हमने ,बसंती आज तिरंगे को कर दिया हमने ,तेरे सपूत है माता ना कर ख्याल कोई जो सर था छाती पर गोदी में धर दिया हमने – नाज शादानी

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   धार इकबाल खत्री ब्यूरो चीफ

      उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा धार के द्वारा सिलसिला  के तहत प्रसिद्ध शायर नाज़ शादानी को समर्पित स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ का आयोजन 26 मार्च, 2025 को मैक्रो विज़न एकेडमी, सरदारपुर में ज़िला समन्वयक अनिता मुकाती के सहयोग से किया गया।

     उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा ज़िला धार में आयोजित ‘सिलसिला, संगोष्ठी उर्दू अदब की रवायतों को समझने, उन्हें आगे बढ़ाने और उस्ताद शायरों के योगदान को याद करने का एक सार्थक प्रयास है। उम्मीद है कि इस कार्यक्रम से धार और आसपास के क्षेत्रों में उर्दू साहित्य के प्रति रुचि और अधिक गहराई से विकसित होगी। इस वर्ष यह कार्यक्रम ज़िला धार के प्रतिष्ठित उस्ताद शायर नाज़ शादानी को समर्पित है, इस का उद्देश्य उनके विचारों और शायरी की विरासत को संजोना और आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाना है।

     धार ज़िले की समन्वयक अनिता मुकाती  ने बताया कि आयोजित कार्यक्रम में सिलसिला के तहत दोपहर 1:30 बजे  स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ शायर एजाज़ शादानी ने की एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में इंदौर के प्रसिद्ध शायर तजदीद साक़ी एवं श्रीवल्लभ विजयवर्गीय मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम के प्रारम्भ में श्रीवल्लभ विजयवर्गीय ने प्रसिद्ध शायर  नाज़ शादानी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाल कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

    उन्होंने कहा कि नाज़ शादानी धार ज़िले के उस्ताद शायरों में गिने जाते थे। उन्होंने धार में उर्दू शायरी को बुलंदियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने शागिर्दों को ग़ज़ल की बारीकियों से वाक़िफ़ कराया और एक से बढ़कर एक शायर धार को दिये। वैसे तो उन्होंने कई अशआर ऐसे कहे जो मशहूर हुए लेकिन उनकी ग़ज़ल का एक शेर जो मेरे दिल के क़रीब भी है और अदबी  दुनिया में मक़बूल हुआ, वो यहां पेश कर रहा हूँ :

   छिड़क के  ख़ूने  जिगर रंग भर दिया हमने, बसंती आज तिरंगे को कर दिया हमने ।

   तेरे सपूत हैं माता न कर ख़्याल कोई, जो सर था छाती पे गोदी में धर दिया हमने ।

     रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :

चाक दामां नज़र नहीं आते,

हों जो इन्सां नज़र नहीं आते

मुँह पे ज़ाहिर ख़ुशी तो होती है, ग़म के एहसाँ नज़र नहीं आते

‘एजाज़ नाज़ी’ धारवी


लाख चाहा कि नाम ही न लें

वक्त पर लगता है भूल जाने में

हमने दिल के लहू से लिखा था

तुम्हें तकलीफ है गुनगुनाने में|

श्री वल्लभ विजयवर्गीय


इक ज़रा जेब से संभल जाऊं

फिर कहीं घूमने निकल जाऊं

इस सलीक़े से सेट कर मुझ को

शाम बुझने लगे तो जल जाऊं

क़मर साक़ी


सोच समझ में गहरा पन आ जाता है

कोशिश करते करते फन आ जाता है


जैसे जैसे दौलत बढ़ती जाती है

कुछ लोगो में हल्का पन आ जाता है

तजदीद साक़ी


लौट आए परिंदे भी घर की तरफ़

रोशनी तीरगी में बदलने लगी

डॉ शब्बीर शादाब धारवी


मेरी सारी यादों को ख़्वाब बना लेना                                             रात अंधेरी है उसमें कुछ दिए जला लेना

डॉ शीरीन क़ुरैशी


कई दिनों से अजब डर मेरी तलाश में है,

तुम्हारे हिज्र का खंज़र मेरी तलाश में है।

नज़र धारवी


किसलिए दिल को गुनहगार कहा जाता है,

एक इबादत है जिसे प्यार कहा जाता है।  

राम परिंदा


रात दिन यादों में आता कौन है ,

अपनी जानिब यह बुलाता कौन है ।

हो गया माहिर कई खेलों में अब ,

खेल ये आख़िर सिखाता कौन है। 

अशोक ओझा


न सोच दिल में सुकून भी हो ऐतबार भी हो,

हर एक चमन में जरूरी नहीं बाहर भी हो

देवराज गोराना


मैं जितना चाहूं तुम्हें तुम भी चाहो उतना अगर

बहुत हसीन ये संसार हो भी सकता है।

असरार धारवी


वो एहसासे मोहब्बत जो निगाहों के असर में है

हमारे भी जिगर में है तुम्हारे भी जिगर में है।  

न मैं उस तक पहुंच पाई न वो मुझ तक पहुंच पाया

अभी मैं भी सफर में हूं अभी वो भी सफर में है।  

अनीता मुकाती धार


मोहब्बत हो अपने मज़हब से बहुत अच्छा है

मगर पहली मोहब्बत में हिन्दुस्तान चाहिए

आशीष त्रिवेदी


क्या दिया है हमने और क्या दे सकेंगे हम

शहीदों के लिए तो तिरंगा ही कफ़न है

अजय पाटीदार 

     कार्यक्रम के पहले सत्र का संचालन राम परिंदा द्वारा और मुशायरे का सफ़ल संचालन तजदीद साक़ी द्वारा किया गया।

कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक अनिता मुकाती ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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