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शास्त्र पथ प्रदर्शक है, पथ पर किसी को चलाते नहीं है, स्वयं को ही चलना पडेगा- आचार्य दिव्यानंद सूरीश्वरजी

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 लक्ष्मणी तीर्थ महामंगलकारी प्रतिष्ठा के तीसरे दिन नूतन जिनालय 
मे परमात्मा का हुआ प्रवेश, हर्षोल्लास के साथ हुए अठारह अभिषेक

संभाग ब्यूरो बिलाल खत्री

                अलीराजपुर जिले के लक्ष्मणी तीर्थं  में शास्त्र पथ प्रदर्शक है, पथ पर किसी को चलाते नहीं है, स्वयं को ही चलना पडेगा। हम सिर्फ मन में भावना कर लेवे हमें सबकुछ मिल जाए तो ये संभव नहीं है, बिना मेहनत के कुछ भावना से कुछ नहीं होगा। ज्ञानियों ने हमें परमात्मा की भक्ति का मार्ग बताया है, जैसे चुंबक लोहे को खिंचती है वैसे ही संसार की अनेक वस्तुएं हमें खिंचती है परंतु भक्ति का मार्ग मोक्ष को खिंचता है। आत्मा के अंदर परमात्मा का रंग जाएगा तो जीवन सार्थक है श्रेष्ठ आत्माएं परमात्मा के रंग में रंग जाती है। ये बात विश्वप्रसिद्ध जैन तीर्थ लक्ष्मणी में परम पूज्य आचार्य देवेश श्रीमद विजय जयानन्दसूरीश्वर जी की पावनकारी निश्रा में महामंगलकारी प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिन आचार्य दिव्यानंद सूरीश्वरजी ने प्रवचन के दौरान कही।

        उन्होने कहा कि परमात्मा की वाणी में हमारी श्रद्धा कितनी है, भगवान को मानने वाले बहुत है लेकिन भगवान की मानने वाले कितने है। प्रभु भक्ति किसलिए और कैसी करनी चाहिए, जिस आत्मा का चित्त प्रसन्न है, उसके लिये प्रभु की आज्ञा मानना जीवन बने। प्रभु को दिल में विराजमान करने की क्या तैयारी है, जिनको परमात्मा का शासन नहीं मिला वो दयनीय है, जिसने जिन शासन का रहस्य नहीं जाना है वो जाने ले तो मन में भरा सब कचरा निकल जाएगा।

            उन्होने कहा कि मन, वचन और निरोगी काया का लाभ नहीं उठाया तो चौरासी लाख योनियों में भटकने जाओगे। परमात्मा के वचन सुने और श्रद्धा नहीं की तो नहीं सुने बराबर होता है। जिसको जहां रूचि होगी वहीं उसकी प्रवृत्ति होगी। हमने व्यवहार तक धर्म को सीमित रखा है, प्रवचन में जाओगे तो धर्म की सीख मिलेगी। जो आत्मा के लिये हो वो दर्शन नहीं तो वह प्रदर्शन होता है, गुरू ही देव और धर्म का मार्ग बताते है। 

            जिसके पास श्रद्धा और विवेक है, वो ही सच्चा श्रावक प्रवचन के दौरान वैराग्य विजय जी महाराजा ने कहा कि कि जिसके पास श्रद्धा और विवेक है और धार्मिक क्रियाएं करे वो श्रावक है, विज्ञान वस्तु को दिखाता है, परंतु छोडने जैसा क्या है औश्र रखने जैसा क्या है वो ज्ञान दिखान है, विनय अच्छी चीच का पकडाता है, विवेक बुरी चीजों को छुडवाता है। संसार में रमो और जमो मत, जो परमात्मा का भक्त है वो ही संसार से अलिप्त रह सकता है। जो परमात्मा से प्रभावित हो जाता है वो भौतिकता से प्रभावित नहीं होता, मनुष्य भव परमात्मा से प्रभावित होने के लिए मिला है। 

नूतन जिनालय में परमात्मा का हुआ प्रवेश, अठारह अभिषेक हुए

इससे पूर्व शुक्रवार प्रात: शुभ मुहूर्त में लक्ष्मणी तीर्थ में प्राचीन मंदिर से भगवान की पद्मप्रभु, महावीर स्वामी, नेमीनाथ सहित सभी जिनबिंबो का नूतन जिनालय में हर्षोल्लास एवं विधि विधान से साथ प्रवेश करवाया गया। दोपहर में नूतन जिनालय में सभी भगवान का अठारह अभिषेक मंत्रोच्चारण एवं सुमधुर भक्ति के साथ लाभार्थी परिवारों द्वारा किया गया। इस दौरान श्रावक-श्राविकाओं में अपार उत्साह का माहौल था। कार्यक्रम में बडी संख्या में जैन समाजजन मौजूद थे।

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