मोहन भागवत ने कहा कि धर्म केवल एक पंथ, संप्रदाय या पूजा का एक रूप नहीं है। धर्म के मूल्य, यानी सत्य, करुणा, शुद्धता और तपस्या समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।