विश्व थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर जिला चिकित्सालय में किया गया जन जागरूकता कार्यक्रम

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संभाग ब्यूरो बिलाल खत्री

    खण्डवा  विश्व थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर नंदकुमार सिंह चौहान शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह श्री दादाजी धूनीवाले जिला चिकित्सालय खंडवा में जन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन ए ब्लॉक के तृतीय तल पर स्थित सभागृह में डॉ. संजय दादू एवं सिविल सर्जन डॉ. अनिरुद्ध कौशल के मार्गदर्शन में किया गया। डॉ. कौशल द्वारा बताया गया कि थैलेसीमिया बीमारी के लक्षणों के बारे में काउंसलिंग कर लोगों को जागरूक करें।

   आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं आशा एवं ए.एन.एम. के माध्यम से योजनाओं का प्रचार करें, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके तथा लोगों को रक्तदान महादान जैसे पुनीत कार्य के लिए जागरूक करें, क्योंकि अस्पताल में सिकल सेल, गर्भवती, थैलेसीमिया एवं अन्य बीमारी के मरीजों को भी खून देने की जरूरत पड़ती है। इसके लिए युवा पीढ़ी को आगे आने हेतु प्रेरित किया। मेडिकल कॉलेज सुपरिंटेंडेंट डॉ. रंजीत बडोले एवं सहायक संचालक डॉ. सुनील बाजोलिया द्वारा कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी गई। डॉ. गरिमा अग्रवाल शिशु रोग विशेषज्ञ द्वारा थैलेसीमिया के मरीजों एवं उनके अभिभावकों को बताया कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से बच्चों में आती है।

     यदि माता-पिता दोनों में दोषपूर्ण जीन होता है तो उसके बच्चे को यह बीमारी होने का खतरा होता है। यदि केवल एक में यह जीन होता है, तो बच्चा थैलेसीमिया का वाहक होगा, उसमें हल्के लक्षण हो सकते हैं या कोई लक्षण नहीं हो सकते। लेकिन वह अगली पीढ़ी में यह बीमारी दे सकता है। यदि बच्चों में धीमी गति से विकास हो रहा है या भूख नहीं लगती हो, चेहरेकी हड्डियों में बदलाव के साथ-साथ गहरे रंग की पेशाब हो रही हो, यदि इस प्रकार के लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। यह जानकारी देते हुए बीमारी के उपचार, निदान एवं जटिलताओं सहित बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बारे में विस्तार से समझाया गया।  डॉ. निशा पंवार स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा बताया गया कि जब महिला गर्भवती होती है, तो पहले तिमाही में स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाकर थैलेसीमिया माइनर है या मेजर है उसका पता लगाकर प्रबंधन किया जा सकता है। डॉ. भूषण बांडे शिशु रोग विशेषज्ञ द्वारा उपस्थित सभी थैलेसीमिया के मरीजों एवं अभिभावकों को बताया कि नियमित खून की जांच करवाएं, ताकि हीमोग्लोबिन के लेवल का पता लग सके। इसके अलावा यह भी बताया कि थैलेसीमिया वाले मरीज अपने परिवार एवं रिश्तेदारों को अपने साथ लेकर आएं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उनका खून बच्चे को दिया जा सके, क्योंकि अस्पताल में अन्य इमरजेंसी वाले मरीजों को भी खून देने की आवश्यकता पड़ती थी। हमें लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक करना है। 

     

मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राओं द्वारा नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लोगों को जागरूक किया गया। इस अवसर पर डॉ. हेमंत गर्ग, शिशु रोग विशेषज्ञ, डॉ. प्रियंका बोर्डिया, डॉ. सारिका बघेल, डॉ. खोजेमा आगा सहित अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे

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