विश्व की अनेक संस्कृतिया मिट गई, लेकिन भारत की सनातन संस्कृति अपने आध्यात्मिक शास्त्र वैभव एवं संत- सत्संग के कारण आज भी प्रसिद्ध है- पूज्य डॉक्टर विवेकनिष्ठ स्वामीजी।

Jansampark Khabar
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धार ब्यूरो चीफ इकबाल खत्री

बीएपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर कापसी फाटा,मनावर रोड कुक्षी में श्रीरामचरितमानस कथा  के प्रथम दिन मंदिर के कोठारी संत पूज्य दिव्यस्वरूप स्वामीजी, पूज्य संत अमृतनिधि स्वामीजी, बड़ौदा से आए हुए  कथावाचक पूज्य संत श्री डॉ विवेकनिष्ठ स्वामीजी, पूज्य संत योगरत्न स्वामीजी, पूज्य संत धर्मसागर स्वामीजी एवं पूज्य संत सेवानिधि स्वामीजी के सानिध्य में कथा के यजमान हरि भक्तों को   पारायण पूजा के साथ ही भगवान श्री स्वामीनारायण की आरती का  लाभ प्राप्त हुआ।

श्री रामचरितमानस कथा का संगीतमय  शुभारंभ करते हुए कथावाचक पूज्य संत श्री डॉ विवेकनिष्ठ स्वामी जी ने बताया कि भांग- गांजा इत्यादि का नशा करो तो, सुबह का नशा शाम को- शाम का नशा सुबह उतर जाता है ,लेकिन भगवान नाम  स्मरण का नशा अगर एक बार चढ़ गया तो यह जीवन में कभी नहीं उतरता है।

    भगवान के नाम की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि इमली बोलने मात्र से मुंह में पानी आ जाता है तो भगवान का नाम जपने से तो मन में पानी उतर आता है।

     जिस प्रकार महंगे से महंगे उपकरण और यंत्र को चलाने के लिए साथ में यूजर मैन्युअल आता है, इसी प्रकार इस *अनमोल, नश्वर एवम्  दुर्लभ शरीर,* को चलाने के लिए हरि कथा एवं  सत्संग इस शरीर का यूजर मैन्युअल होता है,

     जो हमें बताता है कि शरीर से हमें क्या करना है, कैसे सत्संग का लाभ उठाना है एवं कैसे मोक्ष को प्राप्त करना है।

    जीस मोक्ष को पाने के लिए देवता भी तरसते हैं ,इस शरीर के माध्यम से उस मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। 

      भगवान के नाम पर नाम रखने की सनातन परंपरा रही है ,  क्योंकि उससे  हमें नाम के महत्व का पता चलता है।

      जैसे सब लोगों के  दिल में विश्राम रूप इसलिए राम नाम रखा गया है!

   जो लोगों के चित को आकर्षित कर ले ऐसे भगवान कृष्ण का  नाम रखा गया है ।

जो दूसरे के जीवन में आनंद भर  दे,ऐसे भगवान सहजानंद नाम रखा गया है। और जो शत्रुओं का नाश कर दे उनका नाम शत्रुघ्न रखा गया। 

   भगवान के गुणों के आधार पर नाम रखने का भी अत्यंत महत्व है लेकिन आज की आधुनिक पाश्चात्य शैली में लोग अपने बच्चों का अजीबोगरीब नाम रखने लगे हैं जिसका कोई भी महत्व एवम् मतलब रहता नहीं है ।


     भगवान राम की महिमा का वर्णन करते  हुए रामायण शास्त्र की  रचना वाल्मीकि जी एवं तुलसीदास जी ने कि है। वाल्मीकि जी के जीवन परिचय को बताते हुए बताया कि कैसे वह रत्नाकर से वाल्मीकि जी हुए एवं तुलसीदास जी ने मात्र अपनी धर्मपत्नी की एक उलाहना से  लौकिक व्यवहार को अपने मन से हटाकर भगवान के नाम में अपना मन लगा लिया और ऐसे महान श्री रामचरितमानस ग्रंथ का निर्माण किया जो कितने ही लाखों हजारों वर्षों के बाद भी हमारे आध्यात्मिक मार्ग के पथ प्रदर्शक बने हुए हैं ।

    कथा के पश्चात सभी श्रद्धालुओं ने संतों का आशीर्वाद एवं भोजन प्रसादी का लाभ प्राप्त किया ।

    सभी हरिभक्तों ने संत श्री डॉ विवेकनिष्ट स्वामी जी की कथा शैली का  एवं जूनागढ़ से पधारे हरिभक्त डॉक्टर हार्दिक की गायन शैली का मुक्तकंठ से प्रशंसा की।

     इसी प्रकार प्रतिदिन शाम को 6:30 से 10:00 बजे तक श्री रामचरितमानस का अगले 4 दिनों तक कथा वाचन होगा एवं हरि भक्तों को गाओं एवं कुक्षी इत्यादि नगर से लाने के लिए वाहन सेवा भी उपलब्ध कराई जाएगी ।


जय स्वामीनारायण

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