देशी वेलेंटाइन्स डे या प्रणय पर्व नहीं... आदिवासियों का वार्षिक हाट है भोंगर्या(भगोरिया)

Jansampark Khabar
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7 मार्च से रहेगी पश्चिमी मध्यप्रदेश के लोक उत्सव 
भगोरिया हाट की धूम।
ढोल की थाप, बांसुरी की धुन, कुल्फी ओर झूले के आनंद के साथ अपने अंदाज में दिखेगा अंचल।


संभाग ब्यरो बिलाल खत्री

अलीराजपुर आदिवासी अंचल के झाबुआ, आलीराजपुर और धार जिले में देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक उत्सव भौंगर्या (भगोरिया) हाट की 7 मार्च से शुरुआत होगी।होली के सात दिन पहले हाट के दिन लगने वाले भोंगर्या हाट में आदिवासी अंचल पूरी तरह उत्सव में डूबा रहता है। होली के पहले सात दिन आदिवासी समाजजन अपनी पारंपरिक वेशभूषा भोंगर्या हाट में ढोल-मांदल की थाप और बांसुरी की तान पर जमकर नृत्य करते हैं।पारपंरिक वेशभूषा में जब टोलियां नृत्य करते हुए निकलती हैं तो हर कोई झूमने लगता है, भौगर्या हाट को आदिवासी समाज फसली महोत्सव के रूप में मनाते है। यह मूल रूप से मध्य प्रदेश के बड़वानी, धार, अलीराजपुर, खरगोन और झाबुआ जिलों में खासकर आदिवासी समुदाय द्वारा मनाया जाता है।



*पलायन गए लोग भी भौंगर्या (भगोरिया) के समय गांव लौट आते हैं*


देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन भोंगर्या के वक्त वह अपने घर जरूर लौट आता है। भोंगर्या की तैयारियां आदिवासी समाज पहले से ही शुरू कर देते हैं। भोंगर्या हाट से होली में उपयोग की जाने वाली पूजन सामग्री नारियल, अगरबत्ती के अलावा नारियल के वाटके, कांकनिए, चने आदि की खरीदारी की जाती है। साथ ही बच्चे भी खिलौने खरीदने के साथ ही सिटी खरीदकर पूरे दिन भोंगर्या में सीटी की गूंज बना देते है, झूले चक्री भी अब हाट में लगते है, विशेषकर ड्रेस कोड में ओर चांदी के आभूषण पहनकर आदिवासी संस्कृति (परिधान) को भी प्रदर्शित किया जाता है, पहले के जमाने में जब मोबाइल ओर सोशल मीडिया का जमाना नहीं हुआ करता था उस समय रिश्तेदार, दोस्त भोंगर्या में एक दूसरे से मिल जाते थे तो वो एक दूसरे को देखकर बहुत खुश होते थे, ओर उसी खुशी में सब मिलकर पान खाते थे, शरबत पीते ओर एक दूसरे के परिवार घर का हलचल पूछते ओर साथ में भोंगर्या का आनंद उठाते थे, लेकिन आज कल कुछ लोगों द्वारा भ्रामक जानकारियां भी फैलाई जाती है।


*व्यापारियों को बेसब्री से रहता है उत्सव का इंतजार*


त्योहारिया हाट में आभूषण, वस्त्र, सौंदर्य प्रसाधन, जूते-चप्पल, किराना सामग्री आदि की जमकर खरीदारी की जाती है। व्यापारियों को भोंगर्या हाट का बेसब्री से इंतजार रहता है। भोंगर्या को लेकर बाजार खरीदारी से चहक उठता है।


मान्यताएं यह भी.... दो भील राजाओं ने राजधानी भगोर में की थी मेले की शुरुआत-


ऐसी मान्यता है भी कि भौंगर्या की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आसपास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट को भौंगर्या (भगोरिया) हाट कहने का चलन बन गया। हालांकि, इस बारे में दूसरी मान्यताएं भी हैं। आदिवासी समाज इससे फसलें कटने के बाद फसली उत्सव के रुप में भी मनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि होली के पहले लगने वाले हाट में जमकर गुलाल उड़ाया जाता था, जिससे इन्हें गुलालिया हाट कहा जाने लगा। बाद में बदलकर यह भौंगर्या हाट हो गया।


*झाबुआ - अलीराजपुर जिलों में कहां कब लगेगा 2025 का भोंगर्या हाट*


07 मार्च - शुक्रवार -भगोर, बेकल्दा, मांडली, चैनपुरा, उदयगढ़, कट्ठीवाड़ा, वालपुर, काली देवी।


08 मार्च - शनिवार - बामनिया, झकनावदा, राणापुर, मेघनगर, उमराली, नानपुर, बलेडी।


09 मार्च - रविवार - रायपुरिया काकनवानी, ढोलियावाड, झिरन, झाबुआ छकतला, कुलवट, सोरवा, आमखुंट, कनवाडा।


10 मार्च - सोमवार - पेटलावाद मोहनकोट, रंभापुर, कुंदनपुर, आजाद नगर, अलीराजपुर, रजला, बड़ागुड़ा, मेडवा।


11 मार्च - मंगलवार - थांदला, तारखेड़ी, बरबेट, पिटोल, खयडू, आंबुआ, बखतगढ़, अंधरवाडा।


12 मार्च - बुधवार - माछलिया, उमरकोट, बोरी, बड़ी खट्टाली, चांदपुर, बरझर, कल्याणपुरा, मदरानी, ढेक्कल, बोडायता।


13 मार्च - गुरुवार - फुलमाल, सोंडवा, सारंगी, समोई, जोबट पारा, हरिनगर।



अलीराजपुर के भोंगरया हाट संपन्न कराने की तैयारी में प्रशासन सक्रिय।


विश्व प्रसिद्ध भोंगर्या हाट वालपुर सहित अन्य सभी हाट में प्रशासन की पैनी नजर रहेगी, सीसीटीवी लगाकर कैद करने की तैयारियों से लैस प्रशासन किसी भी प्रकार की असामाजिक गतिविधि पर लगाम लगाने की तैयारी कर चुका है, हुड़दंग करने वालों को भी बक्शा नहीं जाएगा।

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