मौत के मुह मे पहुचे छात्र बावजुद ष्षासन प्रषासन निषक्रिय,
जवाबदार मौन , पालको में भारी आक्रोष
इकबाल खत्री
- जहां एक ओर सरकार स्कूली बच्चो की सुरक्षा और सुविधा के बड़े बड़े दावे कर रही है, वहीं दूसरी तरफ सरकार के ही अधिकारी सरकार की नीतियों पर पानी फेरने में कोई कसर नही छोड़ रहे है। एक ही माह में ऐसे दो उदाहरण आदिवासी बाहुल्य डही विकासखण्ड में देखने को मिले है। जहां बीते कुछ दिनों पहले एकलव्य आदर्ष षिक्षा परिसर पिथनपुर में नाष्ते में फूड पायजनिंग होने से 22 बच्चों के बीमार होने का मामला सामने आया था, लेकिन वहां पर अधिक्षक से प्रभार लेकर बीईओ डही के सुपुर्द कर दिया किन्तु वहां के हालात बद से बत्तर हो गए है अधिकारी का अधिकारी कौन।
अभी 2 दिन पहले हुई भारी बारिष में बड़वान्या में संचालित अजजा बालक आश्रम में रात्रि में कमर तक पानी भरने से बच्चो की जान पर बन आई, इस मौके पर संस्था में होस्टल अधीक्षक गैर मौजूद पाये गये, जबकि ग्रामीणों ने यहां पदस्थ बीईओ प्रमोद माथुर को फोन किया तो, उन्होने फोन पर कोई संतोषपूर्ण उत्तर नहीं दिया, अंततः ग्रामीणों ने बच्चो को पानी से लबालब होस्टल से बाहर निकाला और क्षेत्र के भाजपा नेता राजु शर्मा ओर उनके बेटे व साथीयो ने षर्मा के घर ले जाकर बच्चों को सुरक्षित किया
वही कलेक्टर महोदय द्वारा इनका सम्मान करतेे हुए उन्हे नगद पुरूस्कार देने कि घोषणा भी कर दी यहां तक तो ठीक है, लेकिन क्या अधिक्षक ओर गैर जिम्मेदार अधिकारी पर भी कार्यवाही होगी या फिर इस घटना कि पुनरावर्ति कि राह देखते रहेंगंे।
इस मामले पर अधिकारी लिपापोती करते नजर आये, उन्होने कहा कि होस्टल अधीक्षक उस दिन छुट्टी पर थे तो बीईओ माथुर अपनी माताजी के उपचार के लिए बाहर गये हुए थे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि गांव वाले मौके पर सही वक्त पर नहीं पहूंचते और बचाव के उपाय नहीं करते तो उस वक्त इस होस्टल में मौजूद 42 बच्चो का क्या होता ? जबकी दो दिन पहले से अलर्ट कर दिया गया था कि बरसात होने वाली है, लेकिन इस अलर्ट से अधिक्षक और अधिकार को क्या लेना देना इन्हे तो छुटटी लेकर जाना ओर कुछ भी बहाना बनाना, क्या इन लोगो का रवैय्या गैर जिम्मेदाराना नही है, इनके सामने बच्चौ कि जान कि कोई कीमत नही है। क्या जिस संस्था से स्वयं की जीवन लीला चल रही हो उसके प्रति कोई दावीत्व नही है, उनको सिर्फ इतना हि मतलब है कि अपनी जेब बच्चौ के पिछे कैेसे भरे बस ।
डही विकासखण्ड में षिक्षा विभाग की तो यहां हालात बद से बदतर है। अधिकारी और कर्मचारी तो यहां पर्याप्त संख्या में मौजूद है मगर सब के सब मुकदर्षी बनकर टाईम पास करते नजर आ रहे है। सरकार ने आदिवासी क्षेत्र होने के कारण डही विकासखण्ड मंे यहां आदिवासी वर्ग के बच्चो को गुणवत्ता पूर्ण षिक्षा मुहैया कराने के लिए बड़ी तादाद में होस्टल खोले है। जहां बच्चे भी बड़ी तादाद में प्रवेष पाकर पढ़ाई कर रहे है, मगर इन बच्चों को मूलभूत सुविधाएं दिये जाने पर यहां के जिम्मेदार अधिकारियांे और अधीक्षकों का कोई ध्यान नही है।
सूत्रों के अनुसार माने तो शासन स्तर से पर्याप्त मात्रा में फंड होस्टलों में अध्ययनरत् बच्चों को मुलभुत सुविधा उपलब्ध कराने के लिए आता है। मगर यहां पदस्थ होस्टल अधीक्षक और विकासखण्ड स्तर के अधिकारी इस फंड का बंदरबाट किस तरह किया जाए और इस बंदरबाट की मोटी रकम को किस तरह आपस में बांटी जाए ? सिर्फ इसी की प्लानिंग में वक्त निकाल देते है। नतीजा ये होता है कि मौके पर कोई सुविधाएं उपलब्ध नही हो पाती है और हालात बड़वान्या के होस्टल में रात के 3 बजे जैसी स्थिति बन जाती है, 42 बच्चों की जान खतरे में पड़ती नजर आती है। लेकिन बावजूद इसके भी जिम्मेदारों के कानों में कोई जूं तक नहीं रेंगती है।
बात करे बड़वान्या के होस्टल के बिल्डिंग की तो इसे ‘‘मौत का भवन‘‘ भी कहा जा सकता है, जो कि नाले से लगकर बना हुआ है, जहां नाले में पानी का स्तर बढ़ने पर किसी भी समय हर बार कि तरह हि पानी भर जाता है, मगर इस पर किसी अधिकारी की नजर नहीं जाती है। जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यदि ईमानदारी से कार्यवाही की जाए तो इस भवन को आवासीय संस्था से मुक्त किया जाकर इसे केवल अध्यापन कार्य के लिए उपयोग किया जा सकता है, वहीं होस्टल के उपयोग के लिए अलग से भवन का निर्माण कराया जाना चाहिए। समाचार लिखे जाने तक सहायक आयुक्त धार बडवान्या के छात्रावास के निरीक्षण के लिए आए हुए थे।