भोपाल / 31 जुलाई ये तारीख जब भी आती है तो इस दिन सिर्फ एक ही शख्सियत की याद आती है मानो ऐसा लगता है की 31 जुलाई को एक घटना और एक त्रासदी हुई थी और ये त्रासदी थी भारतीय संगीत के कोहिनूर, आवाज़ के जादूगर, सुर-सम्राट, अमर गायक, प्लेबैक गायकों के बादशाह, शहंशाह-ए-तरन्नुम, गीतों के मसीहा, सुरों के सरताज संगीत के तानसेन, द ग्रेट और दुनिया के सबसे बड़े गायक स्वर्गीय मोहम्मद रफी साहब की इस जहाँ से चले जाने की। रफी साहब के चले जाने से जो नुकसान भारतीय संगीत जगत को हुआ है उसकी भरपाई रहती दुनिया तक नही हो सकती। मोहम्मद रफी के बिना संगीत की कल्पना भी नही की जा सकती। और उनके ज़िक्र के बगैर ना संगीत की बात शुरू हो सकती है और ना खत्म, मोहम्मद रफी संगीत के कोहिनूर है जिसकी चमक सदियों तक बाकी रहेगी।
मोहम्मद रफी वाकई एक जीनियस इंसान थे वो एक अच्छे गायक तो थे ही उससे बढ़कर एक अच्छे नेकदिल इंसान थे हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते थे मोहम्मद रफी साहब पैसों के पीछे कभी नही भागे। वो कई निर्माताओ के लिए फ्री गाना गाते थे इसी वजह से स्वर-कोकिला लता मंगेशकर से गीतों की रॉयल्टी को लेकर झगड़ा हो गया था लता मंगेशकर चाहती थी गीतों के सुपरहिट होने पर उसकी रॉयल्टी का कुछ हिस्सा गायकों को भी मिलना चाहिए इसके बर-खिलाफ रफी साहब का कहना था की हमको हमारे गीतों का मेहनताना मिल गया तो हमारा उन गीतों की रॉयल्टी पर कोई हक नही बनता अब वो गाना हिट हो या फ्लॉप इससे हमें कोई फर्क नही पड़ना चाहिए लेकिन लता मंगेशकर गीतों की रॉयल्टी लेने पर अड़ी रही लिहाज़ा रफी साहब ने लता दीदी से कह दिया की में तुम्हारे साथ अब कभी नही गाऊंगा इसका नतीजा ये हुआ रफी साहब और लता मंगेशकर ने कई सालों तक साथ मे नही गाया रफी साहब और लता मंगेशकर के साथ नही गाने के बाद संगीतकार सुमन कल्याणपुर, आशा भोंसले, और शारदा को रफी साहब के साथ गाने मिलने लगे और लता मंगेशकर के हिस्से के गीत सुमन कल्याणपुर और आशा भोंसले को मिलने लगे और लताजी के गीतों की संख्या दिन ब दिन कम होने लगी। लता मंगेशकर नए गायक महेंद्र कपूर के साथ ही मुकेश, किशोर कुमार और मन्नाडे के साथ गीत गा रही थी वही रफी साहब सुमन कल्याणपुर के साथ एक से बढ़कर एक बेहतरीन गीत गा रहे थे लेकिन फिर भी संगीत प्रेमियों को रफी साहब और लता मंगेशकर के साथ ना गाने की कमी खल रही थी और इसका असर फिल्मों पर भी पड़ने लगा था आखिरकार अभिनेत्री नरगिस जी की पहल पर और संगीतकार शंकर-जयकिशन की कोशिशों से रफी साहब और लता मंगेशकर साथ गाने को तैयार हुए और जवेल्थीफ के गीत जिसमे एसडी बर्मन का संगीत था दोनो ने अलगाव के बाद पहला गीत दिल पुकारे आरे-आरे-आरे साथ गाया और इसके बाद दोनों महान गायकों ने एक से बढ़कर एक गीत भारतीय संगीत को दिए।
रफी साहब एक लीजेंड गायक थे और 50 और 60 का दशक रफी दशक के रूप में याद किया जाता है रफी साहब ने 35 वर्ष तक संगीत की दुनिया मे एकछत्र राज किया महान गायक मन्नाडे ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था की में और किशोर एवं मुकेश हम तीनों में नम्बर 2 गायक बनने की प्रतिस्पर्धा थी क्योंकि रफी साहब पहले नम्बर पर विराजमान थे मन्नाडे ने आगे कहा रफी साहब जैसा गाते थे वैसा हम में से कोई नही गा सकता, और हम जो गाते थे रफी साहब उसको आसानी से गा लेते थे मन्नाडे ने 5 गायकों को क्रम दिया जिसमें रफी साहब को पहले नम्बर पर, खुदको दूसरे नम्बर पर, मुकेश को तीसरे नम्बर पर हेमंत कुमार को चौथे नम्बर पर और किशोर कुमार को पाँचवे नम्बर पर रखा। किशोर कुमार भी रफी साहब को बहुत चाहते थे और उनको अपना गुरु मानते थे और कहते थे में एक गीत को 4 या 5 तरह से गा सकता हूँ लेकिन रफी साहब एक गीत को 100 और 200 तरह से गा सकते है रफी साहब के बारे में लताजी कहती है रफी साहब बहुत सरल मन के इंसान थे शराब, सिगरेट, पान-मसाले जैसी चीज़ों से हमेशा दूर रहा करते थे रफी साहब हर गीत को इतनी आसानी, सहजता और सुरीला गाते थे की सुनने वाले वाह-वाह करते थे रफी साहब में मैंने घमंड और गुरुर कभी नही देखा और ना वो अपने आपको श्रेष्ठ गायक कहते थे और ना किसी से बहस करते ना किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करते और ना किसी का मज़ाक उड़ाते थे हमेशा सबके गायन को सराहते थे सबको प्रोत्साहन देते थे सबको हौंसला देते थे और सबकी तारीफ करते थे रफी साहब खाने के बहुत शौकीन थे।
रफी साहब ने अलग-अलग भाषाओं में लगभग 26 हज़ार से ज़्यादा गीतों को अपनी आवाज़ दी है और अपने कर्णप्रिय और मधुर आवाज से कई अभिनेताओं को स्टारडम तक पहुंचाया 50 और 60 के दशक के हर अभिनेता की सफलता में रफी साहब का सबसे बड़ा योगदान था दिलीप कुमार, देवाआनंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, मनोज कुमार, सुनील दत्त, भारत भूषण, प्रदीप कुमार, शशि कपूर, धर्मेंद्र, जीतेन्द्र, राजेश खन्ना, संजय खान, विश्वजीत, जाय मुखर्जी, राजकुमार, गुरुदत्त अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर जैसे अभिनेताओं के लिए मोहम्मद रफी ने एक से बढ़कर एक गीत गाए हर अभिनेता के अंदाज़ को पहचानते थे और उसी अंदाज में गाना गाते थे देखने वाले को ये लगता था मानो वही अभिनेता स्वयं गा रहा है जॉनी वॉकर पे तो रफी साहब के अलावा किसी की आवाज़ जँचती ही नही थी जॉनी वॉकर जब पर्दे पर रफी साहब का गाया हुआ गीत गाते है तो लगता है जैसे जॉनी वॉकर ही गा रहे है कौन भूल सकता है रफी साहब के गाए उन सुरीले गीतों को जो रफी साहब ने गाए है ओ दुनिया के रखवाले, चाहूंगा में तुझे साँझ-सवेरे, रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ, तुझको पुकारे मेरा प्यार, बहारों फूल बरसाओ, बाबुल की दुआएं लेती जा, अकेले है चले आओ जहाँ हो, आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले, पुकारता चला हूँ मै, बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत गाता जाए बंजारा, रहा गर्दिशों में हरदम, परदेसियों से ना अखियां मिलाना, पर्दा है पर्दा, नफरत की दुनिया को छोड़के, ये माना मेरी जा मोहब्बत सज़ा है, आजा तुझको पुकारे मेरे गीत रे, खुदा भी आसमां से जब ज़मी पे, ऐ फूलों की रानी बहारों की मलिका, ओ दूर के मुसाफिर, ये ज़िन्दगी के मेले, तेरी आंखों के सिवा दुनिया मे, ज़िंदाबाद-ज़िंदाबाद ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद, ये चाँद सा रोशन चेहरा, ये रेशमी जुल्फे ये शरबती आँखे, छलकाए जाम आईए आपकी आंखों के नाम, आज मौसम बड़ा बेईमान है, दिल का सूना साज़ तराना ढूंढेगा, आने से उसके आये बहार, चाहे कोई मुझे जंगली कहे, दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर, जब जब बहार आई, और तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे जैसे हज़ारों गीत है जो रफी साहब की आवाज़ पाकर अमर हो गए है आज भी ये सदाबहार और सुरीले गीत सुनते ही आदमी अपने गम भूल जाता है और एक अलग ही दुनिया मे खो जाता है रफी साहब के गाए गीतों की मिठास कभी कम नही होती हर बार तरोताज़ा और दिलकश लगते है ऐसा लगता है बस सुनते चले जाओ। रफी साहब ने देशभक्ति से ओतप्रोत भी कई नायाब गीत गाए है जो भारत की आज़ादी के उपलक्ष्य में आज भी बजाए जाते है जिसे सुनकर देशभक्ति का जज़्बा हमारे मस्तिक में और हमारे मन मे जागता है ये देश है वीर जवानों का, जहाँ डाल-डाल पे सोने की चिड़िया करती है बसेरा, कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, वतन की राह में वतन के नोजवान शहीद हो, अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नही, सुनो-सुनो बापू की ये अमर कहानी एवं दूर हटो ऐ दुनिया वालो जैसे गीत रफी साहब के फन और अंदाज़ को ज़ाहिर करते है रफी साहब के बराबर का गायक आज तक पैदा नही हुआ है और ना हो सकता है क्योंकि मोहम्मद रफी केवल एक ही है कोई दूसरा रफी नही हो सकता।
रफी साहब ने हर छोटे और बड़े अभिनेताओं के साथ ही हर छोटे-बड़े संगीतकारो के लिए गाया है जैसे नोशाद, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी आनंदजी, रवि, ओपी नैयर, हुस्नलाल-भगतराम, श्याम-सुंदर, रोशन, चित्रगुप्त, सलिल चौधरी, सचिनदेव बर्मन, राहुलदेव बर्मन, जयदेव, खय्याम, मदन मोहन जैसे संगीतकारो ने रफी साहब की आवाज़ का बहुत ही अच्छे अंदाज़ में इस्तेमाल किया। इतने बड़े गायक और नायाब फनकार को भारत-सरकार की तरफ से आज तक वो सम्मान नही मिला जिसके रफी साहब सबसे बड़े हकदार थे भारत-सरकार ने रफी साहब को आज तक भारत-रत्न से सम्मानित नही किया बस एक पद्मश्री देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर ली रफी साहब को पद्मश्री के साथ ही पद्मभूषण, पद्म-विभूषण, दादा साहब फाल्के अवार्ड भी देना चाहिए था इसके अलावा भारत सरकार को एक राष्ट्रीय पुरस्कार रफी साहब के नाम पर घोषित करना चाहिए जिसे भारत के राष्ट्रपति अपने हाथों से भारतीय सिनेमा में अपना योगदान देने वालो को देते। पर अफसोस भारत सरकार ने ऐसा कुछ नही किया रफी साहब को भारत-रत्न ही नही बल्कि दुनिया के सारे रत्न मिलना चाहिए क्योंकि रफी साहब इन सबके पहले और बड़े हकदार हैं जीते जी ना सही मरणोपरांत ही भारत सरकार रफी साहब को भारत-रत्न दे दे ये सरकार की रफी साहब को सच्ची श्रद्धाजंलि होगी। बहरहाल रफी साहब की गायकी के आगे सारे पुरस्कार बौने है उनके चाहने वालो ने जो सारी दुनिया मे मौजूद है जो प्यार रफी साहब को दिया वो सबसे बड़ा अवार्ड है ऐसे अज़ीम फनकार के लिए सिर्फ दो लाइन लिखकर इस लेख को खत्म करता हूँ।
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे,
संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे।