भोपाल / 12 रविउल-अव्वल (ईदमिलादुन्नबी) को मुस्लिम-समाज के लोग 12 वफ़ात के नाम से जानते है मुस्लिम उलामा के नज़दीक इस दिन इस्लाम के आखिरी पैगम्बर हज़रत मोहम्मद (सल्ल.) इस फानी दुनिया को छोड़कर अपने रब के पास चले गए थे इस पर तमाम उलामा का इत्तिफाक है।
कुरआन और हदीस की कई किताबो में इसका जिक्र किया गया है की अल्लाह ने 1 लाख 24 हज़ार नबियो को अपना तआरुफ़ (पहचान) कराने के लिए दुनिया मे भेजा। नबी आते थे और लोगो को ये बात समझाते थे की तुम्हारा खालिक और मालिक, तुम्हे पैदा करने वाला तुम्हे रोज़ी देने वाला तुम्हे बीमारी देने वाला तुम्हे सेहत देने वाला तुम्हे मौत देने वाला तुम्हें नफा-नुकसान देने वाला और तुम्हारी हर ज़रूरत को पूरा करने वाला एक अकेला तन्हा अल्लाह है उसके सिवा कोई तुम्हारे मसलो को हल नही कर सकता वही ज़ात इबादत के लायक है, परस्तिश के लायक है, सज़दे के लायक है अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही है ये दावत और ये तालीम नबियो की इंसानो के लिए हुआ करती थी जो अपने वक्त की नबी की बात को मान लेता था वो कामयाब व बा-मुराद होता था और जो अपने वक्त के नबी की बात को नही मानता था उसका इनकार करता था उसको झुठलाता था तो वो नाकाम हो जाता था और अल्लाह के अज़ाब का मुस्तहिक़ होता था ये सिलसिला आदम अलै. से लेकर ईसा अलै. तक मुसलसल (लगातार) चलता रहा। और फिर हज़रत ईसा अलै. के आसमान पर उठाए जाने के लगभग 600 साल बाद इस्लाम की तकमील (मुकम्मल) करने के लिए अल्लाह ने अपने आखिरी रसूल हज़रत मोहम्मद (सल्ल.) को अरब की सरजमीं पर नबी बनाकर भेजा। आप (सल्ल.) इस्लाम के आखिरी नबी थे आपके बाद अब कयामत तक कोई नबी नही आएगा। अल्लाह ने आप (सल्ल.) के बाद नबुवत के दरवाजे को बंद कर दिया है।
जिस वक्त आप (सल्ल.) दुनिया मे तशरीफ़ लाए उस वक्त सारी दुनिया मे ज़ुल्म-ज्यादती, खून-खराबा, दुश्मनी, बेटियों को पैदा होते ही ज़मीन में जिंदा दफनाना, एक-दूसरे जानवरो के पहले पानी पी लेने पर म्यान में से तलवारों का निकल जाना हर ताकतवर का कमज़ोरों पर जुल्म करना और यहाँ तक की उन लोगो पर कोई हुकूमत करने को भी तैयार नही था ऐसे वक्त में आपकी दुनिया मे आमद हुई आप सल्ल. बहुत ही ज़्यादा अमीन और सादिक थे आप हमेशा सच बोला करते थे और इंसाफ किया करते थे आप गरीबो, बेसहारा, यतीमो की किफ़ालत किया करते थे उनकी मदद करते थे अरब के हर इंसान को आप पर खुद से ज़्यादा भरोसा था लोग अपनी अमानते आपके पास रखवाते थे ये सिलसिला 40 साल तक बदस्तूर चलता रहा लेकिन 40 साल के बाद जब अल्लाह ने आपको नबी बनाया और आपने अपनी नबुवत का ऐलान किया तो वही लोग जो आपको सादिक और अमीन कहते थे वही लोग आपकी जान के दुश्मन बन गए थे आपने अरब की कई कुरीतियों और रस्मो-रिवाज़ को खत्म किया जैसे बेटियों को पैदा होते ही ज़मीन में जिंदा दफनाने से आपने लोगो को मना फ़रमाया, औरतो की मंडियों को जिसमे औरते खरीदी और बेची जाती थी उन मंडियों को खत्म किया और औरतो से निकाह का हुक्म दिया और औरतो के हुक़ूको को बतलाया उनको विरासत (जायदाद) में हिस्सा दिलवाया। ज़ुल्म करने से आपने लोगो को रोका एक अल्लाह की इबादत के लिए आपने हर कबीले, हर घराने और हर इंसान को दावत दी और शिर्क-क़ुर्फ़ छोड़ने की लोगो को हिदायत दी आपकी दावत दुनिया की हर बुराई गलत रीति-रिवाज को जड़ से खत्म करने की थी जिसके नतीजे में ये हुआ की लोगो ने आपको मारा-पीटा, बुरा-भला कहा लेकिन आपने हिम्मत नही हारी और लोगो को ईमान की दावत देते रहे और उनकी हिदायत की दुआ करते रहे आपकी मुखालफत सबसे पहले आपके घर से शुरू हुई थी आपके सगे चचा और आपका कबीला ही आपका दुश्मन हो गया था।
रिवायत में आया है ताइफ़ के सफर का किस्सा, इस सफर में जब आप सल्ल. ने लोगो को अल्लाह के दीन की तरफ बुलाया तो लोग इसकी ताब ना ला सके और चारो तरफ से आप सल्ल. पर पत्थरो की बौछार कर दी थी और आप लहू-लुहान हो गए थे यहाँ तक की अल्लाह ने अपने मेहबूब की मदद के लिए फरिश्तों को भेज दिया था इसके बावजूद आप सल्ल. ने अपनी उम्मत को बद्दुआ नही दी और पत्थर मारने वालो से कोई बदला नही लिया और उनको माफ कर दिया ऐसे थे अल्लाह के प्यारे नबी जो इंसानो पर बहुत रहम किया करते थे क्योंकि आपकी आमद तमाम इंसानियत के लिए रहमत थी और आप खुद इर्शाद फरमाते है में तमाम इंसानियत के लिए रहमत बनाकर भेजा गया हूँ और आज सारी दुनिया के मुसलमानों के दिल मे जो अज़मत अपने नबी के लिए है उसकी नज़ीरा मिलना मुश्किल है आपकी मेहनत से ऐसे लोग तैयार हुए जिसने सारे आलम में ईमान और इस्लाम का परचम फहराया। आज सारी दुनिया मे जहाँ कहीं भी मुसलमान नज़र आ रहे है मस्जिदे नज़र आ रही है अज़ाने हो रही है ये सब उन सहाबा किराम रज़ि. की मेहनत का नतीजा है जो अल्लाह के नबी की दावत पर ईमान में दाखिल हुए थे और नबी वाली मेहनत को अपना मुस्तक़िल काम बनाया था और सारे आलम में इस्लाम, ईमान और इंसानियत का परचम बुलन्द किया था और आज ये उम्मत उनके नामलेवा किस और जा रहे है किन-किन खुराफातों में पड़कर दीन की धज्जियां उड़ा रहे है इस्लाम से बेखबर, ईमान और आमाल से बेखबर अल्लाह और उसके रसूल से बेखबर हो के किन-किन चीज़ों में उलझकर दीन को तलाश कर रहे है ये सोचने, गौर करने और फिक्र करने वाली बात है।